Tuesday, 2 November 2021

बच्चों को संस्कार दें

हर व्यक्ति सुख की तलाश में रहता है। कोई भी व्यक्ति दुःखी नहीं रहना चाहता है, बल्कि सब सुखी ही रहना चाहते हैं। एकल परिवारीय युग में जीवनयापन की शैली ऐसी हो गई है, जिससे लोगों के घरों में नकारात्मकताओं ने प्रवेश कर लिया है। 
घर-परिवार के सुखी जीवन के लिए एवं नकारात्मकता के प्रभाव को दूर करने के लिए कुछ व्यावहारिक बिंदुओं पर विचार करना आवश्यक हो जाता है। इन बिंदुओं को अपनाने से हम स्वयं एवं बच्चों को नकारात्मकताओं, विसंगतियों एवं विकृतियों से दूर रख सकते हैं। 

प्रत्येक घर-परिवार की अपनी संस्कृति, मर्यादाएँ एवं परंपराएँ होती हैं। उन्हीं के अनुरूप संस्कार पीढ़ी- दर-पीढ़ी आनुवंशिक रूप में प्राप्त होते रहते हैं। घर के पूर्वजों, बड़े-बूढ़ों, माता-पिता आदि के संस्कार अलग- अलग होते हैं, जो हममें और हमारे बच्चों में आनुवंशिक रूप में आते हैं। 

अधिकांशतः माता-पिता को बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार देकर व अच्छी बातें बताकर उनका पालन- पोषण करना चाहिए, लेकिन उनको नकारात्मकता से बचाने के लिए यह भी जरूरी है कि उनको धन की कीमत समझाते हुए गरीबी या मध्यवर्गीय जीवन का एहसास कराया जाए, जिससे वे अहंकारग्रस्त न हों; क्योंकि अहंकार में नकारात्मकता की भावना भरी हुई होती है। 

आरंभ से बच्चों को सादा जीवन-उच्च विचार का पाठ पढ़ाते हुए, नैतिक शिक्षा से समन्वित शिक्षा देनी चाहिए। घर के वातावरण को बच्चों के समक्ष सकारात्मकता एवं उत्साह से भरने के लिए खुद माता-पिता को अपने जीवन को अनुशासित बनाना चाहिए एवं आदर्श जीवन की मिसाल पेश करनी चाहिए। 

किसी देश, राज्य, स्थान, अंचल की संस्कृति को अपनाना बुरी बात नहीं है-उसको 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना से अपनाया जा सकता है, लेकिन अपने घर- परिवार की संस्कृति को भुलाना भी उचित नहीं है। सभी
संस्कृतियों की अच्छाइयों को लेकर उन्हें अपना बनाने का प्रयास करना चाहिए। आजकल हर परिवार में पाश्चात्य संस्कृति का रंग खूब चढ़ा हुआ है, लेकिन उसकी भी अच्छाई को लेकर उसमें अपनी भारतीय संस्कृति का रंग चढ़ाकर उसे अपनाना चाहिए। हमें उसके रंग में रंगना नहीं चाहिए। 

सुखद भविष्य को भोगने के लिए, आरंभ से वे आदतें बच्चों में डालनी चाहिए, जो अपने घर परिवार के अनुकूल हों, जिससे हमें भविष्य में पछताना नहीं पड़े। जिस तरह का लालन-पालन बचपन में करेंगे-वैसा। परिणाम बच्चों के बड़े हो जाने पर हमें प्राप्त होगा। जैसा बोएँगे, वैसा काटेंगे। 

माता-पिता आगे जाकर सोच नहीं पाएँगे कि कौन सी आदत बच्चों में कहाँ से आई अतः बचपन से ही बच्चों में अच्छी आदतें डालनी चाहिए, क्योंकि बहुत-सी अनुचित आदतों के जन्मदाता माता-पिता प्रेमवश ही होते हैं। 

मध्यमवर्गीय परिवार के लोगों को अपने रहन-सहन को प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाते हुए प्रतिस्पर्धा, अहंकार आदि को स्वयं से दूर रखना चाहिए। पैसे की कीमत के महत्व का ध्यान हमेशा रखना चाहिए। हमारी छोटी-छोटी आदतों का बच्चों पर निश्चित रूप से असर होता है। बच्चे जैसा देखते हैं, वैसा ही करते हैं। वे बुरी आदतें बहुत जल्दी सीख जाते हैं। अतः माता-पिता को पहले स्वयं में आदर्श जीवन को प्रस्तुत करना होगा। तभी बच्चे नकारात्मकता से बच पाएँगे। 

हम सामाजिक प्राणी होते हुए समाज से अछूते नहीं रह सकते हैं। अच्छा या बुरा- हम घर के अलावा समाज से भी देखकर व सुनकर सीखते हैं। इसी प्रकार बच्चे भी जहाँ वे पढ़ते हैं या रहते हैं, वहाँ के वातावरण से अछूते नहीं रह सकते हैं। बाहर के वातावरण में व्याप्त नकारात्मकताओं से बच्चों को बचाने का प्रयास माँ बाप को अवश्य करते रहना चाहिए तथा गलत हरकतों को रोकते-टोकते रहना चाहिए। दुर्भाग्यवश आजकल ज्यादातर माँ-बाप अपने बच्चों की नकारात्मक आदतों को देखकर प्रसन्न होते रहते हैं, लेकिन जब उनकी आदतें बुराई के रूप में पनप जाती हैं तो फिर उनको पछताना पड़ता है। हमें बच्चों की गलत हरकतों पर कभी उन्हें मारना-पीटना नहीं चाहिए, बल्कि भावनात्मक दृष्टि से उन्हें समझाना चाहिए। याद रखना चाहिए कि मारने-पीटने, शारीरिक दंड आदि के परिणाम दुष्कर हो सकते हैं। 

आजकल पाश्चात्य संस्कृति के खान-पान, पिज्जा, बर्गर, चाऊमीन, चाईनीज, इटैलियन आदि व्यंजनों से ग्रसित होना घर-घर की कहानी बन गई है। दूसरी ओर हम सात्त्विक भोजन से दूर होते जा रहे हैं। परिणामस्वरूप हम और हमारे बुद्धि-विवेक की प्रखरता की कमी को हम महसूस कर सकते हैं। तात्पर्य यही है कि हमें पश्चिमी सभ्यता का भोजन सात्त्विकता के स्थान पर तामसिक प्रवृत्ति की ओर अग्रसर करता रहा है। आजकल जंक फूड आदि बच्चों की बुद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालते जा 

वर्तमान में बच्चों में प्रखरता के स्थान पर मलिनता को प्रश्रय मिल रहा है। जिसका उनकी बुद्धि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अपने घर को नकारात्मक ऊर्जाओं से बचाने के लिए व्यक्ति को सात्त्विकता के साथ धार्मिकता का वातावरण बनाए रखना चाहिए। घर में उचित दिशा में शुद्ध- पवित्र स्थान पर मंदिर स्थापित करना चाहिए। 

अपने पूजास्थल में रोज भगवान की पूजा-अर्चना करने से, शंख व घंटियाँ बजाने से मन-मस्तिष्क स्वस्थ व प्रसन्न रहेगा तथा संपूर्ण दिवस आत्मविश्वास से भरा रहेगा। नकारात्मक विचारों से व्यक्ति दूर रहेगा। समय-समय पर यदि भजन, संकीर्तन किया जाए तो वातावरण शुद्ध व पवित्र बनेगा। बच्चों पर भी उसका बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा। गलत आदतों से भी दूर रहने का उनका मन करेगा। बच्चों में धार्मिक संस्कार आएँगे। 

अपने घर में स्वच्छता एवं पवित्रता के द्वारा नकारात्मकता को रोककर भी सुख-समृद्धि को बढ़ावा दिया जा सकता है। जूते-चप्पल आदि को मुख्य दरवाजे के बाहर उतारकर रखने, झाडू-पोंछा कोने में छिपाकर एक निश्चित स्थान पर रखने से भी नकारात्मक ऊर्जा नहीं आती है। खासतौर से रसोईघर, शयनकक्ष में बाहर से आने वाले जूते-चप्पलों का विशेष निषेध होना चाहिए। शौचालय की चप्पलों को रसोईघर में लाने एवं बाहर से सीधे रसोईघर में जूते-चप्पलों के साथ प्रवेश करने से नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है। 

अतः स्वास्थ्य की दृष्टि एवं कीटाणुओं आदि के प्रवेश से बचाव रखने के लिए ऐसा न करना परिवार के लिए हितकारी होगा। विडंबना यही है कि आज की फैशनपरस्त पीढ़ी इन बातों का ध्यान नहीं रखती, बल्कि इन बातों को बुरा मानती है। 

उक्त बातों को न मानने के परिणाम अनेक बीमारियों के रूप में एवं अन्य शारीरिक दुष्प्रभावों के रूप में हमारे सामने आने को तैयार बैठे रहते हैं। इसलिए रोगमुक्त जीवन रहने के लिए बच्चों से लेकर बड़ों को स्वच्छता व पवित्रता अपनाना जरूरी होना चाहिए। 

घर में प्रतिदिन रोटियाँ बनाते समय पहली रोटी गाय को और दूसरी रोटी कुत्ते को देने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा रोज करने से सकारात्मक ऊर्जा का घर में प्रवेश होता है। अपने घर के मुख्य द्वार के बाहर शाम के समय सफेद रंग की रंगोली बनाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा। नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर सकेगी। 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार घर की सुख-शांति एवं समृद्धि के लिए यह आवश्यक है कि घर में जहाँ भी संभव है-वहाँ फुलवारी, पेड़-पौधे, तुलसी का पौधा अवश्य लगाने चाहिए। तुलसी के पौधे से वातावरण शुद्ध व पवित्र रहता है। नकारात्मक ऊर्जा भी घर में नहीं आती है। पौधों को रोज जल देने से हमारे ग्रह-नक्षत्र भी शांत रहते हैं। किसी प्रकार की क्रूरता का आभास भी हमें नहीं होता है। 

अंत में यह ही कहा जा सकता है कि यदि हमारा जीवन संस्कारित एवं अनुशासित होगा तो घर-परिवार, बच्चों का भी जीवन आदर्शपूर्ण एवं सदाचारी होगा। यदि बच्चों का भविष्य सुखद, उज्ज्वल बनाने में हम समर्थ हो जाते हैं तो उज्ज्वल भविष्य का सपना अवश्य साकार होगा। 
बच्चों के उज्ज्वल भविष्य से हमारा भी उज्ज्वल भविष्य जुड़ा हुआ है। इसलिए समस्त व्यावहारिक बिंदुओं को अपनाकर अपने परिवार का भविष्य उज्ज्वल एवं सुखद बनाएँ। नकारात्मकताओं को जीवन से हटाने का सतत प्रयास करें। बच्चों को बचपन से संस्कारित करने का प्रयास सभी को करना चाहिए।

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