पटाखे जलाना भारत की परंपरा नहीं है! पटाखों का आविष्कार सातवीं शताब्दी में चीन में हुआ था. इसके बाद तक 1200 ईस्वी से 1700 ईस्वी तक ये पूरे विश्व में लोगों की पसंद बन गए. यही नहीं गन पाउडर की खोज पर इस दौरान कई किताबें भी लिखी गई हैं. दिवाली में पटाखे जलाने की परंपरा तो बहुत बाद में शुरू हुई है.
चलिए अब मैं आपको ये बताता हूं कि आखिर मनाई क्यों जाती है? दीपावली का मतलब होता है दीपों की लड़ी जो घी या तेल से जलाई जाती है. इसका मतलब बारुद भरे पटाखे बिल्कुल नहीं होता. ये रौशनी का पर्व है. रौशनी, शोर, धमाके और धुंए का पर्व नहीं है.
दीवाली रौशनी का त्योहार है. शोर और धुंए का नहीं
उत्तर भारत में माना जाता है कि रावण का वध करने के बाद जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तो नगरवासियों ने पूरे मार्ग को दिए जलाकर रौशन कर दिया था. ये दिए अधर्म पर धर्म के विजय के प्रतीक के रूप में जलाए गए थे. अंधेर पर उजाले की जीत के रूप में जलाए गए थे.
इसके अलावा भी देश में दिवाली मनाने के कई मान्यताएं प्रचलित हैं-
1- महाभारत के अनुसार पांडवों के 12 साल के वनवास और एक साल के अज्ञातवास से लौटने का प्रतीक है दिवाली.
2- असुर और देवों के बीच समुद्र मंथन के बाद देवी लक्ष्मी के रूप में दिवाली मनाई जाती है. इसके पांच दिन बाद देवी लक्ष्मी की भगवान विष्णु से शादी का जश्न मनाया जाता है. इसके साथ ही भगवान गणेश, मां सरस्वती और कुबेर की भी पूजा की जाती है ताकि घर में सुख, समृद्धि, संकटों से मुक्ति और ज्ञान की वर्षा हो.
3- पूर्वी भारत खासकर बंगाल, ओडीसा और असम में दिवाली, काली पूजा के रुप में मनाई जाती है.
4- मथुरा में दिवाली भगवान कृष्ण को याद कर मनाई जाती है.
5- दक्षिण भारत में केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में भगवान कृष्ण द्वारा नारकासुर के वध के उपलक्ष्य में दिवाली मनाई जाती है.
इतना ही काफी नहीं है. विभिन्न धर्मों के अनुयायी जैसे सिख, जैन और बौद्ध अलग-अलग कारणों से दिवाली मनाते हैं.
1- सिख इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाते हैं. इस दिन गुरु गोविंद सिंह ने जहांगीर के चंगुल से खुद को बचा लिया था और स्वर्ण मंदिर पहुंचे थे. इस मौके पर स्वर्ण मंदिर को रौशनी से सजा दिया गया था.
2- जैन धर्म के अनुयायी महावीर को याद करके ये पर्व मनाते हैं. माना जाता है कि अमावस्या के ही दिन महावीर को देवताओं की उपस्थिति में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.
3- नेपाल के नेवार बुद्धिस्ट लोग तिहर पर्व मनाते हैं जो दिवाली के ही दिन पड़ता है. इस दिन ये गाय, कुत्ते, बैलों की बलि मां लक्ष्मी के समक्ष चढ़ाते हैं. यही नहीं यहां के लोगों का भाई-दूज मनाने की भी अपनी परंपरा है जिसे टीका कहते हैं. सिक्किम में भी दिवाली इसी तरीके से मनाई जाती है.
अब अगर आप लोगों ने ध्यान दिया होगा तो हर क्षेत्र, हर धर्म में दिवाली मनाने की कारण है. अधर्म पर धर्म की जीत. अंधेरे पर उजाले की जीत. अज्ञानता पर ज्ञान की जीत. दिवाली के दिन जश्न का मतलब होता है अपने सगे-संबंधियों के साथ मिलना-जुलना, समय बिताना.
लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखे पर लगी पाबंदी से आहत एक वर्ग कह रहा है कि यह हिंदू भावनाओं का अपमान है. इस बैन के खिलाफ कई तर्क हैं :
1. तो क्रिसमस पर क्रिसमस ट्री के काटने पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जाता ?
2. मुसलमान बकरों को काटना क्यों नहीं बंद करते
3. दिल्ली में तो वैसे ही प्रदूषण रहता है, तो सिर्फ पटाखे पर बैन से क्या फर्क पड़ेगा
4. अजान के लिए मस्जिदों पर लाउडस्पीकर के इस्तेमाल पर क्या कहेंगे क्या ये ध्वनि प्रदूषण ठीक है
5. ये अजीब है कि सारा जोर सिर्फ एक ही समुदाय पर चल रहा है.
पटाखों पर बैन कोई बेहतर आइडिया नहीं है. इससे तो नाराज लोगों पर उलटा असर पड़ेगा. हो सकता है कि वे और ज्यादा पटाखे जलाएं. पटाखा कारोबारी पहले ही आशंका जता चुके हैं कि इस बैन की वजह से दिल्ली में और ज्यादा पटाखों की तस्करी होगी. उनकी क्वालिटी और नुकसान को लेकर कोई नियंत्रण नहीं होगा.
मेरी अब तक समझ में नहीं आ रहा है कि पटाखे और धुएं के कुप्रभावों को दरकिनार करते हुए दिए जा रहे कुतर्कों को कैसे तार्किक ढंग से समझाया जा सके. इसलिए, अब ये आप पर निर्भर करता है कि जानबूझकर जहर की सांस लेना चाहते हैं.
मेरे ख्याल से बच्चों को दीपावली पर पटाखे न जलाने का संदेश देते हुए एक पोस्टर/स्लोगन बनाने को दिया जाना चाहिए।
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